ग्वालियर। कृषि महाविद्यालय में दो दिवसीय ’’जल संचय जन भागीदारी’’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसके अंतर्गत प्रथम दिवस पर जल संकट के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला गया। देखा जा रहा है कि ग्वालियर में दिन प्रतिदिन जल का संकट बढ़ता जा रहा है क्योंकि यहां पर जो नदी तालाब, कुआं बावडी परंपरागत जल के स़्त्रोत हुआ करते थे वह बढ़ती जनसंख्या और अतिक्रमण के कारण समाप्त होते जा रहे है। जिसके कारण वर्षा काल में बारिश के पानी का जल संरक्षण नहीं हो पा रहा है जिससे भूजल स्तर लगातार घटता जा रहा है। जो आने वाले समय विनाश का कारण बनेगा इसी को लेकर कृषि महाविद्यालय ग्वालियर में जल संचय किस प्रकार से किया जाये इसीलिए जल संचय जन भागीदारी दो दिवसीय कार्यक्रम किया जा रहा है यह बात डाॅ शोभना गुप्ता ने कही । डाॅ गुप्ता ने विद्यार्थियों को महाविद्यालय प्रांगण में स्थित वर्षा जल संग्रह हेतु निर्मित तालाब का भ्रमण कराया गया। उन्होने जन संचय की महत्ता का वर्णन करते हुए बताया की भारत में जल संरक्षण एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गया हैं, क्योंकि देश जल की कमी और प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रहा हैं। इसलिए यह पहल ’जल संचय जन भागीदारी’ के रुप में सूरत, गुजरात से की गयी हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जल संरक्षण और वर्षा जल संचय को बढ़ावा देना हैं। ये सामूहिक प्रयास भागीदारी और व्यापक जागरुकता के माध्यम से भारत के लिए जल-सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। सभी छात्र-छात्राओं ने इस भ्रमण में उत्साहित होकर जल हैं तो कल हैं के नारे के साथ बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
द्वितीय दिवस के कार्यक्रम में नव प्रवेषित प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के लिए जल संचय जन भागीदारी पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसमें विडियो क्लिप के माध्यम से छात्र-छात्राओं को बढ़ते जल संकट तथा इसका सामना करने के उपाय दिखाए गये। इसके बाद डाॅ सुधीर सिहं द्वारा ग्रामीण तथा शहरी इलाको में भिन्न भिन्न जल संचय के तरीकांे पर चर्चा की गयी। उन्होने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में तालाब बनाकर वर्षा जल का संचय किया जा सकता हैं। चूंकि शहरी क्षेत्रों में स्थानो की कमी होती हैं इसलिए घर के छत पर जल संचय को अपनाया जाता हैं। साथ ही हमें जागरुक नागरिक की तरह भविष्य के जल संकट को समझते हुए जितना हो सके जल का बचाव करना चाहिए तथा स्वयं के साथ-साथ परिवार, दोस्तो एवं समाज को इसके प्रति जागरुक करना चाहिए। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में 67 छात्र-छात्राओं के साथ डाॅ डी.के. वर्मा, डाॅ स्नेहा पाण्डेय, डाॅ सिद्धार्थ नामदेव, डाॅ अनुराधा गोयल एवं डाॅ प्रियदर्षिनी खम्बालकर की सक्रिय रुप से भागीदारी रही तथा अंषुल गुप्ता, वतन भटनागर, सपना उपाध्याय एवं कृष्णा पाॅल का सहयोग रहा।
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